सावन की हर घटा ..
बताती है ईश्वर का पता..
प्यार से सराबोर..
चल चले कहीं और..
जहाँ ना हो शोर..
ढूँढे दिल का ठौर..
कभी सच्चे..
दिल की तलाश..
कभी भगवान से..
बहुत सी आस..
कभी जिन्दगी लगे..
निरी बकवास..
हे प्रभु आपकी..
सत्र साया में..
मैं भी आया हूँ..
बहुत सी उम्मीदे..
लाया हूँ..
आपके पैमाने पर..
खरा उतरूगा ..
तभी आपके चरणों में..
चिर काल रूकुंगा ..
याद कर..
अपने आराध्य को..
जिन्दगी साध लो..
वो यही कहीं..
तुम्हारे आस पास है..
फिर भी..
दिल क्यों..
रहता उदास है..
जीवन जीने का..
यह एक मौका..
क्यों लगता है..
एक अजीब धोखा..
प्रभु, आपने बनाया मुझे..
भेजा किस काम से..
कुछ भी क्यों..
याद आता नहीं..
प्रभु आपसे किया वादा..
ये कैसा माया जाल है..
जिन्दगी बेहाल है..
ऐसा जीवन क्यों..
इसी का मलाल है..
प्रभु, ये तेरी धरती..
ये गगन, चांद सितारे..
और भी अनगिनत..
सृष्टि के नजारे..
लगते हैं बहुत प्यारे..
प्रभु, तू है मेरे..
दिल में रसा बसा..
तब भी मुझे..
कभी चला ना पता..
अजीब अनहोनी है..
प्रभु, आपने..
जैसी लिखी..
मेरी जिन्दगी..
वैसी होनी है..
प्रभु, और ना लें..
परीक्षा..
और ना तडफा..
अपने चरणों में..
ले मुझे बसा..
आपसे दूरी..
अब सहन नहीं..
तुरंत ले..
अपने पास बुला..
तुम हो जहां कहीं..!!
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कविता की विवेचना:
भगवान का पता/Bhagwan ka pta कविता प्रभु के पते की खोज में लिखी है, कौन सा मंदिर, स्वर्ग, आकाश, पताल जहाँ मेरे प्रभु रहते हैं.
कण कण में भगवान लोग कहते हैं, दिव्य दृष्टी वाले को ही नज़र आते हैं, प्रभु हमें भी दर्शन दो, दिव्य दृष्टि या कोई कृपा करो.
कोई कहता हर दिल हर जीव में है वास उनका, तो मेरा दिल मुझे क्यों नहीं बताता, सूरज चांद सितारे प्रकृती के अद्भुत नजारे अह्सास तो कराते हैं तुम्हारे हर जगह मौजूद होने का.
पर तब भी हम तुम्हें ढूंढ़ते हुये मंदिर मंदिर जाते हैं, तुम्हारी प्रतिमा देख ही संतुष्ट हो जाते हैं, वही तुम्हें भोग लगाते हैं.
कुछ लोग तुम्हें बुलाने को जोर जोर से चिल्लाते हैं, और घमंड में आते हैं कि तुम सिर्फ उनके हो, तेरे नाम पर दूसरों को मौत के घाट सुलाते हैं.
"भगवान का पता "मरने के बाद ही पता चलता है कि यह कितना आसान था, भगवान हमारे साथ सदा मौजूद थे और हम रहे मृग मरीचिका में फंसे.
अब भगवान का पता जान लो अपने अंदर के एहसास को भगवान मान लो, भगवान बिना एक पल भी कोई जिंदा नहीं रह सकता हर जीव में छिपा है भगवान का पता.
...इति...
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