हे प्रभु..
तेरे हुक्म से आया..
तेरे हुक्म से जाना है..
तुमसे रिश्ता..
सदियों पुराना है..
तेरे चरणों में ही मेरा..
पक्का पता ठिकाना है..
मुझे नहीं मालूम..
क्या है आत्मा का किस्सा..
मगर एहसास कि..
मैं हूँ तुम्हारा हिस्सा ..
तेरे हुक्म बगैर संसार में..
पत्ता भी नहीं हिलता..
प्रकृति जीव जंतू..
पेड़ पौधे फल फूल..
तेरी ईच्छा से ही खिलता..
भाग्य में..
तुमने जो लिखा है ..
वही जीवन में है मिलता..
लगन मेहनत प्रेरणा..
तेरा ही आशिष है..
सफ़लता..
तेरी दी बक्षीस है..
तो इतराना कैसा..
इंशा ने बनाया पैसा..
पैसे की खनक..
जिंदगी की चमक..
ये चंद दिनों का..
मेला है..
तेरे बनाये भाग्य के..
खेल में..
इंसान खेला है..
संसार रूपी मंच पर..
अभिनय जारी है..
जिसका रोल खत्म..
उसकी जाने की बारी है..
मंदिर मस्जिद तपस्या..
क्या है इंसान के..
जीवन की समस्या..
तेरा नाम जप के..
तुझे पाना है..
मुझे पता है..
तुझ मैं हूँ समाहित..
एक तू ही प्रभु..
मेरा पक्का पता..
और ठिकाना है..
तेरी लीला..
समझ से बाहर है कि..
खुद से दूर क्यों किया ..
मेरे अन्दर जलता है..
तेरी तपस्या का दिया..
तुम से बिछडे हैं..
तुम में समाना है..
क्यों कि प्रभु..
तू ही मेरा..
पक्का पता..
और ठिकाना है..!!
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कविता की विवेचना:
ईश्वर ही पक्का पता/Ishwar hi pakka pata कविता ईश्वर के अपने अन्दर होने के एहसास की परिणिति है.
श्री कृष्ण भगवान ने स्वयं कहा कि वो हर जीव में मौजूद हैं, जब खुद से पूछते हैं कि कौन हू मैं तो यही आवाज आती है कि तू ईश्वर का ही एक हिस्सा है.
हम मोह माया और अपनी खुद्दारी की एक अलग दुनिया बना लेते हैं और दौलत पैसे के पीछे भागते नज़रं
आते हैं. जब कि पता है कि साथ कुछ नहीं जाना है.
धन दौलत सफलता ईश्वर का आशिष और बक्षीस है,
इसमे इतराना कैसा सब कुछ ईश्वर ही है, इंसान ने बनाया पैसा.
"ईश्वर पक्का पता "एक आत्मा की आवाज़ है और यही सत्य है, सत्य था और सत्य रहेगा, ईश्वर का वास हर इंशा मे है अह्सास करें और अपने प्रभु पर सदेव विश्वाश करें.
...इति..
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