रिश्तों में..
कोई तो हो अपना..
रहा जिंदगी भर..
यही एक सपना..
अपने से पाने को..
मन तरस गया..
नैनो से नीर..
बरस बरस गया..
तलाश अभी तक..
जारी है..
शायद मेरी ही..
मती मारी है..
काश कोई रिश्ता..
अपना होता..
मैं चैन की नींद सोता..
मेरा जन्म..
अधूरा सा लगाता है..
अपने किसी को..
पा लेता..
तो जन्म सफल होता..
अपने के लिये..
दिल मे जगह..
अभी तक खाली है..
जहां मैंने..
गमी बसा ली है..
मन उदास है..
कभी लगता है..
कोई दिल के..
बहुत पास है..
कह दू उसे..
दिल की कुछ बातें..
नहीं कटती अकेले..
विरान रातें..
आंखे बोझिल हैं..
कोई नहीं दिखता..
अपनी परसाई के अलावा..
अपने कहीं ओझल हैं..
क्या यह जिन्दगी..
एक धोखा है..
या अपनों की..
तलाश का..
एक और मोका है..
सारी उम्र बीत गई..
कई रातें आई..
और रीत गई..
अभी तक ना मिला..
कोई अपनों में अपना..
क्या यू ही..
मर जाऊँगा..
लिये अधूरा सपना..
एक दिन..
भगवन सपने में आये ..
गीता के बचन..
याद दिलाये..
तुम हो मुझमे समाये..
तुम आत्मा हो..
एक किस्सा हो..
जन्मों जन्मों तक..
मेरा ही हिस्सा हो..
रिश्ते नाते..
मैंने ही बनाये और..
कभी जोड़े कभी तोड़े हैं..
जो तुम्हें..
अपने से लगते..
अपने थोडे हैं..
अपने अपने से..
लगते जो..
तुम्हारे मन को..
धोखा है वहम है..
तुम एक सच्ची आत्मा हो..
यही बस अहम है..
अकेले आये थे..
अकेले ही जाना है..
फिर क्यों..
तरस तरस..
अपनों को पाना है..
महाभारत में..
अपने अपनों से..
लड मरे..
जब कि स्वयं ईश्वर थे..
सामने खडे..
अच्छा ही है..
दुनिया में कोई..
अपना नहीं..
अपना सा रिश्ता..
खो गया कहीं..
अपने के..
मिल जाने से..
मोह बढ़ता..
जीने की चाह जगती..
असानी से ना मरता..
विरह अग्नि..
ना होती बाकी..
ईश्वर की..
याद ना आती..
अपने के अभाव में..
एक आस है..
ईश्वर दिल के ..
बहुत पास है..
तेरे आँखों में..
जो सपने हैं..
प्रभु सदा से हैं..
और थे..
वही तेरे अपने हैं ..
उन्हीं ने तुम्हें..
इस धरा पर भेजा ..
निकाल अपना कलेजा ..
क्यों अपने की..
तलाश में..
व्यर्थ समय गवाता है..
तेरा अपना ही है..
जो यह विधाता है..
विधाता की प्रीत में ..
रम जा..
ईश्वर का स्नेह प्यार..
सदा पा..!!
Jpsb blog
कविता की विवेचना:
अपने का सपना/Apne ka sapna कविता आज के व्यवसायिक युग में अपनत्व कहीं खो गया है, सब कुछ पैसा ही हो गया है. जैसे महौल को इंगित करती है.
कोई रिश्ता अपना ना रहा, लहू, लहू को नहीं पहचानता पैसा ना हो तो कोई आपको नहीं जानता.
रिश्तों का स्वर्ग सा आनंद कहीं खो गया है, अब सोशल मीडिया अपना हो गया है, सब अपने आप आप मे गुम हैं.
ऐसे में रिश्तों की क्या जरूरत है, अपना सा दिखता कोई नहीं सब अकेले अकेले निकल पडे, इसलिये अपने की खोज छोड़ो भगवान से नाता जोड़ों वही हमारे अपने हैं.
आखिर भगवान के पास ही जाना है, वो ही पक्का ठिकाना है, वही से आये थे ईश्वर ने अपने रिश्ते निभाए हैं.
इतिहास गवाह है महाभारत में अपने ही अपनों से लड मरे, भाई ने भाई को मारा, पितामह भी अपने प्रिय अर्जुन के हाथों मरे, वहाँ तो श्री कृष्ण भगवान स्वयं मौजूद थे.उन्होंने भी होनी को होने दिया ताकि संदेश जाये यहां कोई नहीं किसी का अपना, अपना बनाना है एक सपना और सपने कभी सत्य नहीं होते.
"अपने का सपना " कविता निहित करती है, अकेले आये थे अकेले ही जाना है, भगवान के पास ही तुम्हारा ठिकाना है, किसी से कोई आस मत रखो, भगवान पर विश्वास रखो और उनको बना लो अपना, जबकि वो तो पहिले से ही तुम्हारे हैं, थे और अनंत काल तक रहेंगे, तुम खुद समझो वो तुमसे नहीं कहेंगे.
तो ईश्वर के हो जाओ और जीवन आनंद पाओ.
...इति...
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