तुम मेरे ख्यालों में..
नदी सी बहों ..
हवा के झोंकों से..
कुछ कुछ कहो..
मेरे दिल में..
आँचल सी रहो..
मचलता है मन..
रूबरू होने को..
सपनों में दिखती हो..
ओझाल होने को..
दिल करता है..
आंखे बंद कर..
तेरा दीदार करू..
बाते हजार करू..
कल्पना के घोड़े..
दौड़ता हूँ..
कभी बहुत पास..
कभी दूर हो जाता हूँ..
नजदीकियां भाती हैं..
तेरी याद..
चलचित्र सी आती है..
शकुन पहुंचाती है ..
तुम पक्षी बन..
कहीं उड़ चली..
ना भायी मेरी गली..
उजड़ गया..
मेरा आशियाना..
रुसवाई था..
सिर्फ एक बहाना..
तुझे भाया..
परवाना बेगाना..
कैसे रास्ता रोक लू..
कैसे तुझे टोक दू..
अधिकार की डोर को..
तूने ही तो तोड़ा है..
मुझे अंजान..
मंजिल की ओर..
मोड़ा है..
कौन आया..
हमारे बीच रोड़ा है..
कचरें सामान सी..
तेरी यादे..
क्यों ढोता हूँ..
फेक दू कूड़ेदान में..
मगर फिर..
भावुक होता हूँ..
किसी पुरानी..
दिल की अलमारी में..
यादों को संजोता हूँ..
किसी अनजान..
मोड पर..
सारे बंधन तोड़ कर..
खडा हूँ अकेला..
सूना सूना लगे..
इस दुनिया का मेला..
इस मेले में..
खो जाऊँगा..
फिर भीड़ का..
हिस्सा हो जाऊँगा..
भुला नहीं तुझे..
मगर भुलायुंगा ..!!
Jpsb blog
कविता की विवेचना: आंचल सी रहो/ Aanchal si raho कविता किसी चाहने वाले का दिल का गुबार है.
सच्ची चाहत आज कल कहाँ रही, मगर अगर कोई धोखे से सच्चा चाहने वाला मिल गया तो उसकी कदर नहीं की ज़माने ने. उसे ना समझ ही समझा आज के तथाकथित समझदारी ज़माने ने.
सच्चे चाहने वाले को अक्सर धोखा ही मिला है, इस भौतिक वादी युग में चाहत की कीमत कहाँ,जमाना
पूछता है, चाहत तो तेरी ठीक है पर दौलत कहाँ.
प्यार काफी नहीं आज के जमाने में प्यार के साथ जरूरी है पैसा तो निभ ही जागेगा,तू हो चाहे जैसा.
पैसे की खनक बेवफ़ा बना देती है.
कसूर उनका नहीं है ज़माने का जिसने प्यार को पैसे से तोला और दौलत को प्यार का मापदंड बना दिया.
"आँचल सी रहो " कविता में लाख ठुकराए जाने के बाद भी प्रेमी प्रेमिका की यादें संजोये रखना चाहता है, चाहते हुये भी नफरत नहीं कर पाता, और दिल को एक कोना अपने प्यार को दे देता है.
... इति...
कृपया कविता को पढे और शेयर करें.
Jpsb blog
jpsb.blogspot.com
Author is a member of SWA Mumbai Co ©️ Copyright of poem is reserved.