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स्वर्ग सिधार (Swarg sidhar )

             
Swarg sidhar
Swarg sidhar
Image from:pexels.com 

              

चलो जाये स्वर्ग सिधार ..
इस निर्मोही दुनिया में..
भटकने से अच्छा..
ईश्वर का पाये प्यार ..
यहाँ रहकर भी क्या है करना..
जब पक्का है जरूर है मरना ..

फिर धन के पीछे क्यों..
मारा मारी..
दुनियादारी निभाते निभाते..
जिंदगी बीत गई सारी..
की मंदिर मस्जिद की लड़ाई..
मगर कभी भगवान से..
लगन लग ना पायी..

धनवान और बलवान..
बनने की होड़ में ..
हुयी इंसानियत कमजोर..
एक दूजे को कुचल कर..
इंसान आगे भागा है..
अंत समय आने पर भी..
कभी ना नींद से जागा है..
बुरी गत देखी..
इंसान ने इंसान की..
तब भी याद ना आई..
भगवान की..

पाप को इंसान ने अपनाया है..
अपना उद्देश्य बनाया है..
इंसान ने इंसान के आगे..
लगाया है रोड़ा ..
जब भी मौका मिला..
इंसान ने किये दंगे फसाद..
एक दूजे का सिर है फोड़ा..
यह सिलसिला..
आदि काल से जारी है..
इंसानियत पर हैवानियत भारी है ..

ईशा को सूली पर टांगा..
सिख गुरुओ को..
मारा सताया..
इंसानियत ने क्या पाया..
फिर भी आज तक..
खत्म ना हुयी लड़ाई..
कभी कोई हिटलर आया..
कभी हिरोशिमा- नागासाकी ..
पर परमाणू बंब बरसाया..

होते ही रहे हैं..
इंसान से इंसान के पंगे..
कभी भारत पाक के नाम..
1947 बटवारे के दंगे..
कभी बहाने से 1984 का..
नर संहार ..
किसी ना किसी बहाने से..
इंसान रहा इंसान को मार..
ईश्वर के अवतार भी..
शांति और मिल कर रहना..
ना सीखा सके..
अवतार आ आ थके..

इंसान लगातार पैदा होते रहे..
और निरंतर लड मरे..
ईश्वर भी सोच में पडा ..
जब इंसान के पाप का..
भर गया घडा..
कि इस इंसान का क्या करें..
या तो अपनी बनाई..
यह दुनिया समाप्त कर दे..
या सैतानों और हैवानों को..
पैदा होते ही..
मरने का वर दे..


या इंसान नामी जीव से..
बल बुद्धी विधा सब हर ले..
इंसान को भी..
जानवर कर दे..
जो होगा बलवान..
एक दूजे को मार खाएगा..
कोई भेड़िया या शेर बन जायेगा..
भेड़ बकरिया और गीदड़ भी..
रहेंगे बाकी ..
दुनिया बन जाएगी स्वर्ग सी..
तो इंतजार किस बात का..
हो जाओ तैयार..
चलो जाये स्वर्ग सिधार..!!

Jpsb blog 

कविता की विवेचना: 

स्वर्ग सिधार /Swarg sidhar कविता पृथ्वी पर इंसान की फितरत को इंगित करती है. 

जब से पृथ्वी पर इंसान नाम का जीव भगवान ने बनाया है, इंसान ने दुनिया में उत्पात मचाया है. मार काट हिंसा यही रहा इंसान के कामों का हिस्सा. 

इंसान ने इंसान को समय समय पर मारा है, यहां तक कि ईश्वर के अवतार को भी नहीं बक्सा, ईशा को सूली पर चढाया, सिख गुरुओ को मारा अत्याचार किये. 

कभी हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु बम बरसा तबाही की, कभी कही हिटलर पैदा हो गया, कभी अँग्रेजों ने अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिये सारी दुनिया को सताया और अपना गुलाम बनाया.

कभी अपना अधिकार बढ़ाने के लिये विश्व युद्ध किये 
कमजोर को मारा कुचला, कभी भारत पाक के नाम 1947 के दंगे और कभी 1984 का नर संहार, हर हालत में इंसान रहा इंसान को मार और सुपर पावर बनने की दहाड़.यूक्रेन की तबाही ताजातरीन उदाहरण है. 

"स्वर्ग सिधार " कविता में पृथ्वी पर इंसान के रहने का कोई ओचित नहीं बनता, भगवान भी इंसान को बना पस्ता रहा है, शायद इंसान से बल बुद्धी विधा वापस ले ले और इंसान भी जानवर बिरादरी का हिस्सा हो जाये, जंगल राज स्थापित हो जाये. 
इसलिए अभी वक़्त है चलो स्वर्ग सिधार जाये, भगवान की नजदीकियां और प्यार पाये. 

..इति..
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©️ Copyright of poem is reserved 





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