रूठे को मनाने की..
कोशिश कभी की नहीं..
क्या गलत था..
क्या था सही..
गर्त में दब गया कहीं..
कच्चे धागे सा..
क्यों टूट गया बंधन..
अब जोड़ों तो भी..
कभी जुड़ेगा नहीं..
गठाण आ गई..
चुभती है कहीं..
अक़्स आईने में..
दिखता था तेरा..
जैसे यही कहीं..
पास हो खड़ी..
मगर आईने में..
दरार ऐसी पडी..
आईना देखने की..
जाती रही घडी..
पीठ पर पड़ी..
बेवफाई की छड़ी..
सावन का सुहाना..
मौसम था दिलकश..
फ़ूलों की खुशबू की..
बहार थी बिखरी हर तरफ..
अचानक आँधी चली..
सब कुछ उड़ा ले गई..
पतझड़ सा मौसम आ गया..
मैं निहारता हूँ..
बाग उजड़ा सा..
स्तंभ हूँ अवाक हूं..
विश्वाश का महल..
देखते देखते कैसे ढह गया..
कौन किसे क्या कह गया..
मैं अनजान रहा..
बेख़बर प्रतिघात से..
ये अचानक..
कौन घात कर गया..
पुरानी यादों को मारकर..
कब्र पर पत्थर गाड़ कर..
हाथ जोड़ खडा हूँ..
जिन्दगी के नये द्वार पर..
जिन्दगी चलती रहेगी..
रुकेगी नहीं..
हस्ती मेरी कभी भी..
झुकेगी नहीं..
वक्त का पहिया..
सफर पर ले जा रहा है..
नयी दुनिया दिखा रहा है..
वक्त कभी किसके लिये..
रुकता नहीं..
साथ चलो तो ठीक है..
गुजरा वक्त लौटता नहीं..
इंतजार करना मना है..
वक्त की रफ्तार कई गुना है ..
तेज रफ्तार भागा हूँ..
मंज़िल पर पहुच जागा हूं..
बहुत कुछ पिछे छूट गया..
एक मुसाफिर फिर लूट गया..
किस पर करू यकीन..
किस पर नहीं..
वादे कसमें, प्यार वफ़ा..
खो गई कहीं..
ईश्वर तेरा शुक्र है..
मुझे समय पर जगा दिया ..
मैं विश्वास में खोया था..
तब ही किसी ने दगा दिया..
ईश्वर जरूर इंसाफ करेगा..
सच झूठ साफ़ करेगा..
तुम ना होना शर्मिदा..
अपने गुनाहों पर..
ईश्वर तुम्हें भी माफ करेगा..!!
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कविता की विवेचना: बेवफाई/Bewfai कविता वफा और बेवफा के बीच एक लकीर खींचती है.
वफा- सच्चा प्यार, विश्वाश और त्याग है अपने खास चाहने वाले के लिये, जिसके ऊपर दुनिया की हर चीज निछावर उसका दिल मेरा घर जो तेरा है वो मेरा है.
बेवफा -कुछ भी टिकाऊ नहीं है ,एक व्यापार है, नफा तो मेरा, घाटा तो तेरा, मौका अगर तुमसे बेहतर नपा तुला तो मौके पर धोखा, अब तुम कौन का सवाल, मुझे तो और बेहतर दिल और दिल वाला भा गया, अब तुम जाओ, मेरा दिल और किसी पर आ गया.
सच्चे प्यार मे बेवफा शब्द ही नहीं होता, सारे दुख दर्द जो तेरे वो अब मेरे, खुशिया तुझ पर लुटानी है जब तक जिंदगानी है. आगे भी जन्मों जन्मों का नाता है, तेरे सिवा मुझे कुछ ना भाता है.
जन्मों की छोड़ो कुछ दिन ना निभि क्यों मेरी नजर व्यापारी थी, फायदे नुकशान का तोल मोल जारी था,
तुझ में नुकसान ही नजर आता है, इसलिए अब तू मुझे नहीं भाता है.
तलाश जारी थी तुमसे कुछ अच्छे की अब मिल गयी है, अब नये सौदे को परखना जारी है, अगर और अच्छा ऑप्शन नहीं मिलता तो तलाश यही खत्म होगी.
पुरानी यादे भस्म होगीं, यही मन लगेगा, क्यों कि मेरा दिल तो है आवारा ना जाने किस पर आएगा, मगर भाना ही काफी नहीं व्यापारीक फायदा भी होना चाहिये.
बेवफाई में सब जायज है, क्योंकि प्यार के कोई कायदे नहीं होते एक ही पैमाना है प्यार में जो एक बार किसी का हो गया तो होकर रह गया जन्मों तक ये बन्धन अपने आप में मज़बूत है, क्यों कि यहां तेरे मेरे की रेखा खत्म होती है और हमारे शब्द के साथ मजबूती से जुड़ जाती है जिंदगी अनंत काल के लिये.
काश बेवफाई ना होती.
..इति..
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