सुख दुख में..
साथ निभाये जो..
होते हैं रिश्ते..
बहानों बहानों में..
अपनापन प्यार जताए जो..
होते हैं रिश्ते..
फ़ूलों के हार हैं..
अच्छा व्यवहार हैं..
ईश्वर का उपहार हैं..
ये रिश्ते..
मानना ना मानना..
रिश्तों से आमना सामना..
हमसफरी की कामना है..
ये रिश्ते..
रिश्तों की भावनाओं का..
करे सम्मान..
रिश्तों को भगवान की..
देन मान..
रिश्तों को निभाओ..
जिन्दगी में होगा स्वर्ग..
का सा भान..
रिश्तों से ही जिन्दगी है..
जिंदगी का कहा मान..
रिश्तों को ही..
जिन्दगी मान..
रिश्ते जब दिल..
तोड़ देते हैं..
जिन्दगी को नया..
मोड देते हैं..
जब अपने अपनों को..
छोड़ देते हैं..
तबाह होती हैं जिंदगियां..
मैंने ऐसे दौर देखे हैं..
टूटा जो रिश्ता..
फिर नहीं जुड़ता..
चुभे टूटे धागे की..
गांठ सा..
रिश्तों की मार से..
दर्द होता है..
ज़ख्म दुखते है..
रिश्ता जब मरता है..
बैचैन करता है..
रिश्ता सिसकता है..
आजाद सा दीखता हैं ..
मगर रिश्ते का बंधन ही..
मन को सिंचता है..
अपनी ओर खींचता है..
चुपके से हॉल ऐ दिल..
पूछता है..
मरने के बाद..
रिश्तों का बंधन..
नहीं रहता..
एक बार चला जाता है..
जो रिश्ता..
फिर अनंत तक..
अपना नहीं रहता..
काश निभाया होता..
जब जिंदा था रिश्ता..
शायद वो..
वक़्त के पहले..
नहीं मरता..
रिश्ते की दरार का..
क्या कारण था..
वो कभी पता नहीं चलता..
रिश्ता टूटने के बाद..
अनजान राही हो गये..
कोई जान पहचान ना रही..
दुनिया लगे रूखी सूखी सी..
एक ही जन्म का यह रिश्ता..
इसी जीवन में अंत है..
आगे अनंत है..
अगला जन्म किसने देखा है..
यह जिन्दगी एक धोखा है..
ना सोच रही..
ना सोचने वाला..
मर गया रिश्ता जो था..
दिन रात कटोचने वाला..
घमंड अहम सब यही रह गया ..
मरता हुआ रिश्ता..
कुछ अबोले बोल कह गया..
ईश्वर ने ही तो स्वयं..
यह रिश्ता जोड़ा था..
फिर ऐह में क्यों इसे तोड़ा था..
रिश्ते अटूट होने चाहिये..
कुछ अपनेपन और गुस्से की..
रिश्तों में छुट होनी चाहिये..
भूल अह मिलाप में..
आनंद की अनुभूति है..
प्यार भरी माफी..
दिल को छुती है..
निभाओ रिश्ते..
इस जीवन में तो स्वर्ग यहीं है ..
क्यों दिल पर बोझ लेकर जीना..
रूठो की याद में..
ज़हर भरे घूंट पीना..
क्यों अपने जीवन को..
स्वयं नरक बनाना..
क्या था रिश्तों से..
लडने का बहाना..
व्यर्थ के अहम को टालो..
अभी वक़्त है..
रूठे के मना डालो..
वर्ना जीवन व्यर्थ है..
मरने के बाद बस..
घोर व्यथा है..
जिन्दगी की..
अनूठी कथा है..
ना पश्चाताप का मौका..
ना ही और कोई..
उपाय बचा है..
तो निभा लो रिश्ते..
जब तक जिंदा हो..
जो कि ईश्वरीय वरदान हैं..
इन्हीं रिश्तों से..
जिन्दगी की खुशियां..
और सकूंन आराम है..
रिश्तों में मानो तो भगवान है..!!
कविता की विवेचना:
रिश्ते/Rishte कविता रिश्तों की जीवन में महत्ता और अनिवार्यता को रेखांकित करती है.
रिश्ते भगवान का वरदान है और ईश्वर की व्यवस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है, फिर भी इंसान कई बार इन भगवान के बनाये रिश्तो को नकार देता है और अपने अहम में अपना ही फैसला रिश्तो के बारे में लेता है और अंत में पश्चात्ताप करता है और पश्चात्ताप करते हुये ही मरता है.
निभाये जाये रिश्ते तो यहीं पर स्वर्ग है, चारों ओर खुशियो की बहार है, लगता है जैसे जीवन का यही एक सार है, वर्ना बिन रिश्तों के जीवन बेकार है.
रिश्तो को तोड़ कर जीना अपना जीवन स्वयं नरक बनाना है, रिश्तों के सिवा जीवन में रखा क्या है, जीवन से अगर रिश्ते निकाल दिये जाये तो जीवन में अच्छा क्या है.
रिश्तों को तोड़ना ईश्वर का अपमान है, क्यों इंसान समझ बैठा कि जैसे वो खुद भगवान है, जब कि भगवान ने इंसान को जीवन जीने के लिये सीमाये दी हैं, इन सीमाओं के अन्दर जिया जाये तो भगवान की कृपा अनुकंपा सदेव बनी रहती है.
सीमाये लाँघने पर ईश्वर को दिखाना पडता है कि क्या उनकी हस्ती है, इंसान को भी इसी जीवन में अपनी ओंकात अपने आप नज़र
आने लगती है, मगर फिर भी इंसान ईश्वर का इशारा नहीं समझता और बुरे परिणाम भुगतता है, इंसान अपनी ही लगायी आग में जलता है और खाक हो जाता है.
"रिश्ते "भगवान ने निभाने के लिये किसी खास कारण से बनाये हैं, ताकि इंसान को दिया हुआ जीवन और संवर सके और जीवन आनंद विभोर हो, जिन्दगी खुशियां और हो.
जिसने ईश्वर के इस वरदान को जान लिया, समझो उसने ईश्वर को अपने नजदीक मान लिया और इसी को ईश्वर को पाना कहते हैं.
ईश्वर अपने प्रिय को आत्मसात करता है.रिश्ते ईश्वर मिलन का हिस्सा है, तो रिश्तों को निभा लो और ईश्वर को पा लो.
भवसागर से जीवन नैया रिश्तों के चपूओ से ही पार होगी, उस पार भी मिलेंगे ये रिश्ते जब तेरी पुकार होगी.
..इति..
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Author is a member of SWA Mumbai
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