मेरी प्यारी बिटिया..
तुझे गर्भ में ही मार दिया..
वो एक खून था..
मैं क्यों अपराधी बना..
क्या मेरे मन में जनून था..
कैसी वो जवानी की..
बेहूदा सोच थी..
खोखला आधुनिक मजबून था..
तुझे गर्भ में मार दिया..
मेरी गुडिया..
वो एक खून था..
तेरी माँ की ममता..
भी तो सूखी थी..
वो क्यों तेरी हत्या रोक ना सकी..
बस पल भर के रूठी थी..
वो क्यों निर्णय लेने में चुकी थी..
बिटिया जन्म लेना..
तेरा मौलिक अधिकार था..
ईश्वर की इच्छा थी..
ईश्वर का वरदान था..
तुझे मार दिया गर्भ में..
मैं क्यों बना भगवान सा..
मार तुझको गर्भ में..
जैसे बड़ा काम किया..
लगता क्यों है..
जीना अपना आशान किया..
मासूम लास पर जिये..
ऐसे जीवन पर धिक्कार है..
मार कर एक मासूम को..
कैसे सर उठाये जीते हो..
तुम बुजदिल पापी हो..
जो मासूमों का खून पीते हो..
क्यों अपने कृत्यों पर..
पश्चाताप नहीं हुआ..
तेरा दिल ना पसीजा ..
कैसे तू है जी रहा..
काश तूने गुडिया को..
जीने दिया होता..
तेरे आगन बहता..
प्रेम का निर्मल श्रोता..
तू भी जीवन के अभिन्न आनंद पाता..
पा नन्हें नन्हें आशिष ..
गद गद हो जाता..
अपने जीवन की..
निर्मल धारा को स्वयं तूने बांटा है..
मासूम कली को..
खिलने पहले काटा है..
कैसा तू माली है..
बीज को पनपने नहीं देता..
बाग की रौनक बढ़ने नहीं देता..
घोर पापी है तू..
मासूम का हत्यारा है ..
पाप अपना मान ले..
अपने आप को सज़ा दे..
अंत में ईश्वर तो..
तेरे पापो का हिसाब करेगा..
तू भी सजा से डरेगा..
जवानी में किये बेफिक्र पाप..
बुढ़ापे में आते हैं..
एक एक करके याद..
माफ़ी का तू हकदार नहीं..
जीवन तेरा गया बेकार कहीं ..
अपनी अंतिम यात्रा पर जा..
अपने किये पाप पर पश्चाता..!!
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कविता की विवेचना:
बेटी बचाओ /Beti Bachao कविता कुप्रथा लडकी की भ्रूण हत्या को रोकने के प्रयासों में सहयोग है, बेटी को पैदा होने से पहिले ही मार देना, ईश्वर का अपमान है.
सरकार ने कन्या भ्रुण हत्या कानून बनाया है, तब भी इस कानून का कितना पालन होता है किसे पता,भ्रष्टाचार सब जगह है यहां कितना है जाँच का विषय है.
बेटी का घर में आगमन लक्ष्मी का आगमन है, सब जानते हैं मगर क्यों मानते नहीं, बेटी से घर की बरकत है रौनक है, बेटी भविष्य की माँ है, किसी की बहन है किसी की पत्नी है.
बेटी देवी है माँ दुर्गा, माँ काली का स्वरूप है, देवी परम पूज्यनीय है, माँ परमपूज्य आदरणीय है, फिर कन्या भ्रूण का तिरस्कार क्यों?
उसकी गर्भ में हत्या का विचार क्यों.
"बेटी बचाओ" कविता लेखन ने एक एक पिता की अनुभूति से लिखी है,
पिता ना जाने किस आधुनिकता या रूढ़िवाद के जुनून में बेटी की भ्रुण हत्या कर देता है और चिर काल बाद पश्चाताप की आग मे जलता रहता है, अपने आप को सजा देना चाहता है, इस अपराध बोध से निजात पाना चाहता है, उसे भी पता है कि यह अक्षम्य अपराध है. फिर भी पश्चाताप से ईश्वर उसे कभी क्षमा कर दे.
"बेटी बचाओ _बेटी पढ़ाओ "
..इति..
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