किया था तुमने..
जिसके लिये शृंगार..
किया था तुमने..
जिससे मन ही मन प्यार..
वो मैं हूँ..
हवा का झोंका..
जो तेरा आँचल उड़ाता है..
तूफ़ान सा तेरे दिल में..
जो शोर मचाता है..
जिन हवाओ से..
तेरा जिस्म टकराता है..
वो मैं हूँ..
जिसके ख्यालों में..
तुम खोये से रहते हो..
दिल में दबी बात..
जिससे चुपके से कहते हो..
जिसके लिये तुम..
हर तकलीफ सहते हो..
वो मैं हूँ..
भाग्य की रेखाओं में..
जिसे तुम ढूंढते हो..
ज्योतिषों से जिसके बारे में..
तुम पूछते हो..
जिसकी यादों के राज..
छुपे हैं तेरे दिल में..
वो मैं हूँ..
तुम्हारे मन की तमन्ना..
तेरे जीवन का..
कोरा पन्ना..
तेरे लिये सावन का आना..
तेरे द्वारा विरह गीतों का गाना..
जिसको है तुझे पाना..
वो मैं हूँ..
तुम्हारे अंदर से..
जो आवाजें आती हैं..
जिसकी यादे तेरा..
दिल धडकाती हैं..
जिसके स्पर्श से..
सिहरन सी आती है..
वो मैं हूँ..
तेरे जीवन में..
मैं क्यों हूँ मजबूरी..
यादे सिर्फ बाकी हैं..
विरह की लंबी दूरी..
तब भी एक दिया..
उम्मीदों का दिल में जलता है..
तेरा मन जिसकी राह तकता है..
वो मैं हूँ..
मौत ना आ गई होती..
मैं तुमसे मिल लिया होता..
यू ही अकेला..
कब्र में ना सोता..
लगा कर तेरी यादों का गोता..
काश मैं अमर होता..
रूह जो तुझे..
तेरे आस पास होने का..
एहसास कराती है
वो मैं हूँ..!!
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कविता की विवेचना:
वो मैं हूँ/Woh mai hun कविता दो दिलों के मन के अहसासों अरमानो की परिकल्पना है.
दिल में दबे एहसास मन में छुपी बात जो कभी किसी से कह ना सके जिसके बिना जिंदा भी रह ना सके यह कविता स्मरण करती है.
सच्चा प्यार कभी मरता नहीं, चाहे जिस्म मर जाते हैं मगर प्यार को अमर कर जाते हैं, अमर प्यार की कई कहानिया मौजूद हैं.
जैसे मीरा का भगवान श्री कृष्ण से निस्वार्थ प्यार, प्रह्लाद का श्री विष्णु भगवान से प्यार, ध्रुव का भगवान से प्यार, लैला मजनूं, हीर राझा,शिरी फ़रियाद इतिहास में अमर हैं.
"वो मैं हूँ "कविता सच्चे प्यार की परिकल्पना है आज के भौतिक वादी युग में ऐसा सच्चा प्यार बचा है कि नहीं पता नहीं, हो सकता हो भी मगर ढूढ़ना पडेगा.
प्यार बना रहे प्यार अमर रहे, प्यार है तो संसार है वर्ना सब बेकार है.
..इति..
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