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Tunhe Saha Jo Dard - A Tribute to Nirbhaya



Tune Saha Jo Dard - A Tribute to Nirbhaya



16 December 2012 the date which witnessed the heinous crime of a gang rape of 23 year old paramedical student Jyoti Singh by five animal like men in Delhi. She as Nirbhaya (fearless) united the country in fight against sexual crimes which resulted in strengthening of rape laws but sadly her rapists even after fast track court hearing are waiting for judgement. Nothing has changed in last three years except the change in governments. Rapes are still rampant in the country and no government looked serious to deal with the issue.



I wrote below poem on 29th December 2012 after her death as a tribute to her, I shared it here on this blog previously on 1st Jan. 2013. Today I feel to share it again because as a society we have failed her not because her rapists are not hanged but for the attitude of society towards the rape crimes have not changed. I added the last stanza today while re-writing this poem here.







तूने सहा जो दर्द वो इन्तेहाँ ही थी,

तड़पी तू रात भर वो हमारी ख़ता भी थी,

तेरे वास्ते जो शोर-ओ-गुल है फ़िक्र है तेरी,

हालत की तेरी एक वजह हम में भी कहीं थी।

Tune Saha Jo Dard Wo Intehan Hi Thi,

Tadpi Tu Raat Bhar Wo Hamari Khata Bhi Thi,

Tere Waste Jo Shor-O-Gul Hai Fikr Hai Teri,

Halat Ki Teri Ek Wajah Hum Mein Bhi Kahin Thi.


जो अब ये आवाज़े यूँ ही दब गईं,

कोशिशें गर सारी यूँ ही व्यर्थ गईं,

फिर आइना न देखें वो खादी लिबास में,

इज्ज़त जिनकी ख़ाक फिर ता उम्र हो गई।

Jo Ab Ye Awaazein Yun Hi Dab Gayi,

Koshishsein Gar Sari Yu Hi Vayarth Gayi,

Phir Aaina Na Dekhein Wo Khaki Libas Mein,

Izzat Jinki Khak Phir Ta Umr Ho Gayi.


मौत की सज़ा भी बहुत कम है मगर,

उन दरिन्दों सी गर हम भी लें डगर,

मकसद ये भटक जाएगा फिर इन्साफ़ का,

की महफूज़ रह सकें ज़ीनतें शाम-ओ-सहर।

Maut Ki Saza Bhi Bahut Kam Hai Magar,

Un Darindon Si Gar Hum Bhi Lein Dagar,

Maksad Ye Bhatak Jaega Phir Insaaf Ka,

Ki Mehfooz Reh Sakein Zeenatein Sham-O-Sahar.


आहें तेरी,चीखें तेरी अब सैलाब बन चुकीं,

चिंगारियां उठीं थीं जो अब आग बन चुकीं,

 न थकेंगे,न रुकेंगे,न थमेंगे हम,

फरियादें अब तलक थी जो अब फरमान बन चुकीं।

Aahein Teri, Cheekhein Teri Ab Sailaab Ban Chukin,

Chingariyan Uthi Thi Jo Ab Aag Ban Chukin,

Na Thakenge, Na Rukenge, Na Thamenge Hum,

Fariyaadein Ab Talak Thi Jo Ab Farmaan Ban Chukin.


रूह तेरी आज भी रोती होगी देखकर,

गलियों में,रास्तों में, घरों में, नगर-नगर,

उछले है आबरू, मिलें हैं ज़ख्म बेशुमार,

और हम पन्ने पलट रहे हैं बस कुछ देर सोचकर।

Ruh Teri Aaj Bhi Roti Hogi Dekhkar,

Galiyun Mein Raston Mein, Gharo Mein, Nagar-Nagar,

Uchle Hai Aabru, Milein Hain Zakhm Beshumaar,

Aur Hum Panne Palat Rahein Hain Bas Kuch Der Sochkar.


इन्तेहाँ (Intehaan) - Limit ; ख़ता (Khata) - Mistake ; व्यर्थ (Vyarth) - Waste ; खादी लिबास (Khadi Libaas) - Khadi Cotton Clothes that worn by Indian politicians ; ज़ीनतें (Zeenatein) - Beauties (here used for girls/ladies) ; फरमान (Farmaan) - Order ;  आबरू (Aabru) - Dignity . 






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